जब तक मैं खूद हार न मान लूं मुझे कोई हरा नहीं सकता
"जब तक मैं खूद हार न मान लूं मुझे कोई हरा नहीं सकता"
मैं प्रसन्नजीत लाकरा हिन्दी अंग्रेजी लेखक विशेषकर लोगों को सही तरीके से जीने तथा उनके जीवन में खूद को साबित करने लिये बेहतरीन लेख लिखता हूं जिसे पढ़कर पाठक कुछ बेहतर बदलाव ला सकते हैं उनके जीवन में क्या कमी है क्या करने की जरूरत है ऐसे ही खूबसूरत जीवन संदेश देने की कोशिश करता हूं जो लोग अपने जीवन में कुछ करना चाहते हैं लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसी है कि क्या किया जाये और क्या न किया जाये कुछ समझ नही आता पर मैं कहता हूं चिंता न करो हमें फाॅलो करें तथा अन्त तक पढ़ें।
कहावतें बहुत कहते या पढते हुये सुने होंगे लेकिन वास्तविकता का कभी ध्यान रखा है दोस्तो आपने? कहावतें यूं ही सोच कर नही कहा जाता कहावतों को सही समय पर कहा जाता है और लिखा जाता है तभी हम जान पाते हैं कि आखिर कहावतों कितनी सच्चाई है बुजुर्ग अक्सर अपनी कहावतें युवाओं तथा बच्चों को सुनाना पसंद करते हैं ताकि बच्चें कुछ बेहतर सीखें।
मेरा कहने का मतलब कहावतों नहीं है लेकिन कहावतें और कविता जिसे हम शायरी कहते है ये हर अलग अलग समय पर बोली जाती है खुशी के समय खुशियां प्रदर्शित कविते कहे जाते है तथा कुछ बिगङी परिस्थिति में उदास भरी कविये पेस किये जाते हैं ताकि दोनों जगह सांत्वना प्रदान किया जा सके दोस्तों आप सब बहुत ही सुंदर ज्ञान भरी बातें पढ़ रहें हैं जब मैं गाँव में था छोटा था बहुत ही जिद्दी था लेकिन सबका लाङला था लेकिन सात आठ साल के बाद मैं अपने बङी माँ के साथ अपने बेहतर शिक्षा के लिये गांव से शहर आया ।
मेरी बङी मां बहुत ही तेज और कङक अंदाज की है याने वे एक बेहतरीन जीवन के अनुभव ले चुके थे इसलिये उन्हें वास्तविकता मालूम होती थी मैं उन्ही के साथ इन्दौर शहर आया मैनें बचपन में गांव में यही सोचकर आया था कि शहर जाकर बहुत घूमूंगा फिरूंगा और ऐस करूंगा लेकिन मुझे वास्तविकता का जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि शहर आने के बाद मेरे जीवन में कैसी परिवर्तन आयेंगी बङी मां के परिवार में कुछ समय याने एक दो साल तक तो स्थिति ठीक ही थी लेकिन उसके बाद उनके जीवन में एक के बाद एक बहुत ऐसी स्थिति आयी जिसमें कई बार मुझे बैचेन रहना पङा ।
कहने का मतलब परिवार में जब बच्चे बङे हो जाते हैं तब उन्हें संभालना माता पिता के लिये मुश्किल सा हो जाता है क्योंकि कुछ युवा ऐसे भी होते जो गैर जिम्मेदाराना जीवन जीते हैं जिसकी वजह पूरी परिवार को बैचैनी झेलङी पङती है ऐसी ही परिस्थिति मेरे बङी मां के परिवार में हुआ था मैं छोटा था विद्यार्थी था इसलिये ज्यादा कुछ कर नही सकता था जो कर सकता था वो पार्ट टाइम काम कर थोङा बहुत अपनी बङी मां को सहायता करता था परिवार में ही लोग एक दूसरे को नही समझते और मानते हैं परिवार में खुशहाली कहां नजर आयेगी ।
मैं बचपन से ही अपनी बङी मां के साथ शहर आ गया था परिस्थिति बिगङने के बावजूद मैं उनका साथ नही छोङा वरना मैं जिद्दी भी हूं लेकिन मैंने उन परिस्थितियों में खूद किस तरह संभाला और परिस्थिति को संभालने का मौका मिला यह मेरे लिये बहुत ही खूबसूरत अनुभव था मुझें मन लगता भी था कि मुझे गांव लौट जाना चाहिये लेकिन मेरे अन्दर के जज्बे और यकीन मुझे पल पल एक खूबसूरत सीख देती थी जिस वजह से मैं फिर वही काबिलियत और जूनून से भर जाता था ।
और अपने पढ़ाई पर मन लगा लेता था मैनें अपने जीवन में बहुत मानसिक तनाव भी झेलें हैं जिसकी वजह कोई बाहर का नही था बल्कि अपने ही परिवार में उत्पन्न होने वाले बिगङे परिवर्तन से था जिसमें आर्थिक, सांस्कृतिक, और गैरजिम्मेदाराना तथा तंगी भरी होती थी जिसमें आशांती तथा तनाव होता था क्योंकि परिवार में बङे भाई बहन जिम्मेदार नहीं थे परिवार को आर्थिक रुप से आगे नही बढ़ा रहे थे केवल पिता पर निर्भर थे जो कि बुजुर्ग हो गये थे ।
मैनें कल्पना भी नही किया था कि मैं गांव से शहर आने के बाद मेरी सारी आजादी छीन जायेगी कहने का मतलब शहर में ऐसा होता कि स्कूल या कॉलेज गये फिर पार्ट टाइम पर जोब पर गये इसी में समय बित जाता है और यही रुटीन बन जाता था इस वजह मैं न पूरा पढ़ाई पर मन लगा पाता था न कही घूम फिर सकता है यही रूटीन बन जाता था इस वजह से रात में जागकर गैलरी में पढ़ाई कर लेता था तथा सुबह जागकर पढ़ाई करता था ।
लेकिन फिर भी समय मैनेज तो हो जाता था लेकिन जो पढ़ाई में रिविजन चाहिये होता था वही चीज नही हो पाता था जिस वजह से मुझे कई बार काॅलेज में ऐटीकेटी आती थी ऐसी कोई सेमेस्टर नही था जिसमें मुझे ऐटीकेटी न मिली हो ,हां मगर ये सब मेरे जीवन का बेहतरीन अनुभव में से एक हैं जो मुझे अलग अंदाज से जीना सीखाता है क्योंकि मैनें उन सभी परिस्थितियों से लङकर आगे निकल चुका हूं जो मुझे पल पल बैचैन रहने पर मजबूर कर देता था ।
"जो मुसीबतों में भी ,
रहता अडिग है,
उसे हरा सके न कोई"
नमस्कार दोस्तो!
मैं प्रसन्नजीत लाकरा हिन्दी अंग्रेजी लेखक विशेषकर लोगों को सही तरीके से जीने तथा उनके जीवन में खूद को साबित करने लिये बेहतरीन लेख लिखता हूं जिसे पढ़कर पाठक कुछ बेहतर बदलाव ला सकते हैं उनके जीवन में क्या कमी है क्या करने की जरूरत है ऐसे ही खूबसूरत जीवन संदेश देने की कोशिश करता हूं जो लोग अपने जीवन में कुछ करना चाहते हैं लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसी है कि क्या किया जाये और क्या न किया जाये कुछ समझ नही आता पर मैं कहता हूं चिंता न करो हमें फाॅलो करें तथा अन्त तक पढ़ें।
कहावतें बहुत कहते या पढते हुये सुने होंगे लेकिन वास्तविकता का कभी ध्यान रखा है दोस्तो आपने? कहावतें यूं ही सोच कर नही कहा जाता कहावतों को सही समय पर कहा जाता है और लिखा जाता है तभी हम जान पाते हैं कि आखिर कहावतों कितनी सच्चाई है बुजुर्ग अक्सर अपनी कहावतें युवाओं तथा बच्चों को सुनाना पसंद करते हैं ताकि बच्चें कुछ बेहतर सीखें।
मेरा कहने का मतलब कहावतों नहीं है लेकिन कहावतें और कविता जिसे हम शायरी कहते है ये हर अलग अलग समय पर बोली जाती है खुशी के समय खुशियां प्रदर्शित कविते कहे जाते है तथा कुछ बिगङी परिस्थिति में उदास भरी कविये पेस किये जाते हैं ताकि दोनों जगह सांत्वना प्रदान किया जा सके दोस्तों आप सब बहुत ही सुंदर ज्ञान भरी बातें पढ़ रहें हैं जब मैं गाँव में था छोटा था बहुत ही जिद्दी था लेकिन सबका लाङला था लेकिन सात आठ साल के बाद मैं अपने बङी माँ के साथ अपने बेहतर शिक्षा के लिये गांव से शहर आया ।
मेरी बङी मां बहुत ही तेज और कङक अंदाज की है याने वे एक बेहतरीन जीवन के अनुभव ले चुके थे इसलिये उन्हें वास्तविकता मालूम होती थी मैं उन्ही के साथ इन्दौर शहर आया मैनें बचपन में गांव में यही सोचकर आया था कि शहर जाकर बहुत घूमूंगा फिरूंगा और ऐस करूंगा लेकिन मुझे वास्तविकता का जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि शहर आने के बाद मेरे जीवन में कैसी परिवर्तन आयेंगी बङी मां के परिवार में कुछ समय याने एक दो साल तक तो स्थिति ठीक ही थी लेकिन उसके बाद उनके जीवन में एक के बाद एक बहुत ऐसी स्थिति आयी जिसमें कई बार मुझे बैचेन रहना पङा ।
कहने का मतलब परिवार में जब बच्चे बङे हो जाते हैं तब उन्हें संभालना माता पिता के लिये मुश्किल सा हो जाता है क्योंकि कुछ युवा ऐसे भी होते जो गैर जिम्मेदाराना जीवन जीते हैं जिसकी वजह पूरी परिवार को बैचैनी झेलङी पङती है ऐसी ही परिस्थिति मेरे बङी मां के परिवार में हुआ था मैं छोटा था विद्यार्थी था इसलिये ज्यादा कुछ कर नही सकता था जो कर सकता था वो पार्ट टाइम काम कर थोङा बहुत अपनी बङी मां को सहायता करता था परिवार में ही लोग एक दूसरे को नही समझते और मानते हैं परिवार में खुशहाली कहां नजर आयेगी ।
मैं बचपन से ही अपनी बङी मां के साथ शहर आ गया था परिस्थिति बिगङने के बावजूद मैं उनका साथ नही छोङा वरना मैं जिद्दी भी हूं लेकिन मैंने उन परिस्थितियों में खूद किस तरह संभाला और परिस्थिति को संभालने का मौका मिला यह मेरे लिये बहुत ही खूबसूरत अनुभव था मुझें मन लगता भी था कि मुझे गांव लौट जाना चाहिये लेकिन मेरे अन्दर के जज्बे और यकीन मुझे पल पल एक खूबसूरत सीख देती थी जिस वजह से मैं फिर वही काबिलियत और जूनून से भर जाता था ।
और अपने पढ़ाई पर मन लगा लेता था मैनें अपने जीवन में बहुत मानसिक तनाव भी झेलें हैं जिसकी वजह कोई बाहर का नही था बल्कि अपने ही परिवार में उत्पन्न होने वाले बिगङे परिवर्तन से था जिसमें आर्थिक, सांस्कृतिक, और गैरजिम्मेदाराना तथा तंगी भरी होती थी जिसमें आशांती तथा तनाव होता था क्योंकि परिवार में बङे भाई बहन जिम्मेदार नहीं थे परिवार को आर्थिक रुप से आगे नही बढ़ा रहे थे केवल पिता पर निर्भर थे जो कि बुजुर्ग हो गये थे ।
मैनें कल्पना भी नही किया था कि मैं गांव से शहर आने के बाद मेरी सारी आजादी छीन जायेगी कहने का मतलब शहर में ऐसा होता कि स्कूल या कॉलेज गये फिर पार्ट टाइम पर जोब पर गये इसी में समय बित जाता है और यही रुटीन बन जाता था इस वजह मैं न पूरा पढ़ाई पर मन लगा पाता था न कही घूम फिर सकता है यही रूटीन बन जाता था इस वजह से रात में जागकर गैलरी में पढ़ाई कर लेता था तथा सुबह जागकर पढ़ाई करता था ।
लेकिन फिर भी समय मैनेज तो हो जाता था लेकिन जो पढ़ाई में रिविजन चाहिये होता था वही चीज नही हो पाता था जिस वजह से मुझे कई बार काॅलेज में ऐटीकेटी आती थी ऐसी कोई सेमेस्टर नही था जिसमें मुझे ऐटीकेटी न मिली हो ,हां मगर ये सब मेरे जीवन का बेहतरीन अनुभव में से एक हैं जो मुझे अलग अंदाज से जीना सीखाता है क्योंकि मैनें उन सभी परिस्थितियों से लङकर आगे निकल चुका हूं जो मुझे पल पल बैचैन रहने पर मजबूर कर देता था ।
"जो मुसीबतों में भी ,
रहता अडिग है,
उसे हरा सके न कोई"
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_PrasanjeeT Lakra_
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